Sunday, October 26, 2008

जलवायु परिवर्तन संस्थान कायम करने की सिफारिश


 
Oct 26, 02:28 pm

नई दिल्ली। संसद की एक समिति ने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के मकसद से पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय या विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत एक राष्ट्रीय संस्थान कायम करने की सिफारिश की है।

संसद में हाल में पेश की गई विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और पर्यावरण संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह सिफारिश की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने और विभिन्न उपाय अपनाने के लिए व्यापक अध्ययन एवं शोध तथा उच्च स्तरीय तकनीकी विशेषज्ञता की जरूरत है।

अन्नाद्रमुक नेता की अध्यक्षता वाली इस समिति ने कहा कि मौसम बदलाव और इसके प्रभावों से निपटने के लिए राष्ट्रीय अनुसंधान एजेंडा की पहल करने की जरूरत है। इसके लिए पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय या विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत अलग से एक राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन संस्थान कायम किया जा सकता है।

दुनिया के तापमान में हो रही वृद्धि और भारत पर इसके प्रभाव के बारे में समिति की रिपोर्ट में कहा गया कि जलवायु परिवर्तन के बारे में इस बात को लेकर चिंताएं हैं कि इससे हिमालयी ग्लेशियर पर विपरीत असर पड़ सकता है और यह पिघल सकते हैं। कुछ अनुमानों के अनुसार हमारे ग्लेशियर पिछले 40 सालों में 21 प्रतिशत पिघले हैं। समिति ने कहा कि पिछले पचास सालों में हालांकि कई राष्ट्रीय संस्थानों और विश्वविद्यालयों ने विभिन्न प्रयास किए हैं, लेकिन फिर भी भारतीय ग्लेशियरों पर दुनिया में सबसे कम अध्ययन हुआ है।

संसदीय समिति ने कहा कि हिमालयी ग्लेशियरों के बारे में अनुसंधान प्रयासों को मजबूती देने की आवश्यकता है। रिपोर्ट में कहा गया कि मध्य दक्षिण पूर्व एवं दक्षिण पूर्व एशिया में विशेषकर इनकी बड़ी नदियों की घाटियों में ताजे जल की उपलब्धता 2050 तक कम होने का पूर्वानुमान व्यक्त किया गया है। यह सीधे तौर पर हमारे लिए चिंता की बात है। इसमें कहा गया कि एशिया के तटवर्ती क्षेत्र विशेषकर दक्षिण पूर्व एवं दक्षिण पूर्व एशिया के विशाल डेल्टा क्षेत्र में बाढ़ के रूप में समुद्री जल घुस आने की आशंका अधिक है और कई मामलों में नदियों में भी भीषण बाढ़ आने का खतरा है। इन खतरों से हमारे विशाल डेल्टा क्षेत्र विशेषकर सुंदरवन अछूते नहीं रहेंगे।

समिति के अनुसार अनुमान व्यक्त किया जा रहा है कि जलवायु परिवर्तन से तेजी गति से हो रहे शहरीकरण, औद्योगिकीकरण और आर्थिक विकास से जुड़े प्राकृतिक संसाधनों और पर्यावरण पर दबाव बढ़ जाएगा। इसने कहा कि दक्षिण पूर्व एवं दक्षिण पूर्व एशिया में जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़ एवं सूखे की वजह से होने वाली बीमारियों एवं मृत्यु का खतरा भी बढ़ सकता है।

रिपोर्ट में कहा गया कि जलवायु परिवर्तन के मामले में भारत की अधिक मजबूत स्थिति नहीं होने के कारण यह जरूरी है कि इसके प्रभावों को कम करने के उपाय अपनाने के अलावा गरीबी कम करने के प्रयासों को तेज किया जाए।




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