Monday, December 01, 2008

बिहार और बिहारियों की दुर्दशा

Dear All,
Agast Anand started the discussion "Plight of Bihar & Biharis".

To view this discussion, go to:
http://bihar-network.ning.com/forum/topics/plight-of-bihar-biharis

My response is given below:


प्रिये अगस्त आनंद,
आप का बिहार और बिहारियों पर लिखा गया यह विश्लेषण और समीक्षा हाला की लघु रूप में है फिर भी समझने के लिए तथा अगली कारर्वाई के लिए काफी है. इसमें एक बात जो छुट गयी है वो है गैर बिहारियों को पार्लियामेन्ट में लोक सभा तथा राज्य सभा दोनों के माध्यम से भेजने का. आज़ादी के तुरत बाद से यह सिलसिला चल रहा है. मुजफ्फरपुर से आचर्य कृपलानी तथा अशोक मेहता को राष्ट्रीय नेता होने की वजह से भेजा गया था. लेकिन बाद में जॉर्ज फेर्नान्देस और शरद यादव कों. ये कब के बिहारी हुए. मुंबई और मध्य प्रदेश में हजारों के नेता नहीं बन पाए, बिहार से चुनाओ जीतते हैं. रांची से रविन्द्र वर्मा थे जो चुनाओ के बाद दिखे नहीं. बहुतों को तो उनके बारे में पता नहीं है वे केरलियन थे. राज्य सभा के लिए तो सीधा डील होता है और बदनाम वकील आनंद जैसों को भी हम भेजते रही. अभी झारखंड से नाथवानी जी को भी पैसा ले दे कर भेज दिया गया. एस एस अहलुवालिया कब के बिहारी हैं. पर अपने लालों के पास पैसे की कमी रही उन्हें किसी ने भाव नहीं दिया. बाहरी लोग आप के इस गुण पर फ़िदा होकर आप का शोषण नहीं करे तो क्या करें.इस बात को भी ध्यान में रखना है की हम जिन बिहारियों की नेतागिरी पर आह्लादित होते रहते हैं वे कैसे हैं कितने छोटे लोग हैं. ये अपने कुकर्मो कों छिपाने के लिए ब्लैक मेल होते हैं और ऐसे बाहरी लोगों कों टिकेट देते हैं. ये हमारा आप का प्रतिनिधित्व नहीं करते ये सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए जीते मरते हैं. अपने परिवार के बाहर कुछ अच्छा नहीं दीखता है.
अब प्रश्न है की हम क्या करें. उत्तर है इन नेताओं कों कंट्रोल करे और कुछ नए नेता पैदा करे जो बिहार के १९७४ के आन्दोलन से उपजे नेताओं जिन्हें हम अच्छी तरह देख और समझ रहे है से अलग हो. जो मुंबई की मार से और कोसी की बाढ़ से उपजे हों.
मैं एक बात कहना चाहूँगा की इ-संबाद की अपनी सीमाएं हैं और हमें कहीं एक निश्चित समय और स्थान पर इकठा होकर बातचीत और चर्चाओं के जरिये ही आगे बढ़ने का, कुछ नए कदम उठाने का प्रयास करना है . चूँकि जनता का सहयोग अति आवश्यक है अतः इस तरह की बातचीत और बैठकों का मेसेज लोगो तक पहुचना जरुरी है. दुर्भाग्य है की इस प्रस्ताव पर कोई कोमेंट नहीं होता. इसके लिए हजारों की बात मैं नहीं कह रहा अगर १०,२०, ३० .....जो भी आ जाये उन्ही का स्वागत होना चाहिए. क्या कोई पटना में बैठा व्यक्ति यह सुन रहा है और क्या वह इसे मुदा मानते हुए एक दो-तिन दिन की बैठक का दिसम्बर के अंत या जनवरी के मकर संक्रांति के आसपास आयोजन कर सकता है. जो भी इसमें शामिल होंगे वे अपने खर्चे पर होंगे यह स्पष्ट है. आगे की रणनीति वहीँ पर तय की जाय.

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