June 25 2014
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सबसे अच्छी बात जो पिछले दिनों में सबसे कम चर्चा का विषय रही वह 23 जून को हुए रांची नगर निगम के मेयर का चुनाव था जिसमे 726000 कुल मत थे. इसका सिर्फ 17.7 % मतदाताओं ने अपने मताधिकार का उपयोग किया। राजनीतिक दलों, सरकारों और चुनाव आयोग के अधिकारियों के साथ साथ आम जनता को यह क्या सीख दे गयी? 27 जून को गिनती होने पर जिसे बहुमत मिल जाएगा यानि 8 % मत वह कानूनी रूप से मेयर बनेगा पर क्या यह सही होगा। कहाँ तो लोकतंत्र को सीधी रेखा में चलाने के लिए विजयी उम्मीदवार को आधे मतों को प्राप्त करना जरूरी होना चाहिए यहाँ तो वोटिंग ही 17.7 % हुई. क्या अब भी इसे लोकतंत्र और लोकतांत्रिक कहा जाएगा? क्या इस तरह के चुने हुए लोग, ऐसी अल्पमत मेयर या सरकार के भरोसे जनता शासन, सुरक्षा और सुविधा की इच्छा रखते हुए निश्चिंत हो सकती है? सबसे बड़ा चंठ भी इस स्थिति से समझौता नहीं कर सकेगा बशर्ते वो स्वयं पहुंचा हुआ शातिर शैतान न हो.
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सबसे अच्छी बात जो पिछले दिनों में सबसे कम चर्चा का विषय रही वह 23 जून को हुए रांची नगर निगम के मेयर का चुनाव था जिसमे 726000 कुल मत थे. इसका सिर्फ 17.7 % मतदाताओं ने अपने मताधिकार का उपयोग किया। राजनीतिक दलों, सरकारों और चुनाव आयोग के अधिकारियों के साथ साथ आम जनता को यह क्या सीख दे गयी? 27 जून को गिनती होने पर जिसे बहुमत मिल जाएगा यानि 8 % मत वह कानूनी रूप से मेयर बनेगा पर क्या यह सही होगा। कहाँ तो लोकतंत्र को सीधी रेखा में चलाने के लिए विजयी उम्मीदवार को आधे मतों को प्राप्त करना जरूरी होना चाहिए यहाँ तो वोटिंग ही 17.7 % हुई. क्या अब भी इसे लोकतंत्र और लोकतांत्रिक कहा जाएगा? क्या इस तरह के चुने हुए लोग, ऐसी अल्पमत मेयर या सरकार के भरोसे जनता शासन, सुरक्षा और सुविधा की इच्छा रखते हुए निश्चिंत हो सकती है? सबसे बड़ा चंठ भी इस स्थिति से समझौता नहीं कर सकेगा बशर्ते वो स्वयं पहुंचा हुआ शातिर शैतान न हो.
मेरी समझ में यह एक गहन विचार विमर्श का विषय है जिसमे देश के सभी नागरिकों को सक्रिय रूप से भाग लेना चाहिए ताकि सबसे पहले लोकतंत्र की दशा और दिशा सुनिश्चित हो सके.
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