Sunday, August 31, 2014

रंजीत कोहली उर्फ़ रक़ीबुल हसन के कारनामों की नागरिक समिति के द्वारा इसकी जांच


प्रभात खबर के ३१ अगस्त के अंक में रंजीत कोहली उर्फ़ रक़ीबुल हसन के कारनामों की 'दर्शक' द्वारा की गयी समीक्षा http://epaper.prabhatkhabar.com/c/3411749 और http://epaper.prabhatkhabar.com/c/3411768 में पढ़ी जा सकती है. इसे आम नागरिकों के दिलो दिमाग में उत्तर जानेवाली विश्लेषण के साथ प्रस्तुत की गयी है. लेकिन सर्वप्रथम इस पूरी घटना से सम्बंधित खुलासों के लिए हम तारा शाहदेव नामक युवती की हिम्मत और अडिग रहकर इस पूरी घटना को इस अंजाम तक पहुँचाने के लिए उसका धन्यवाद करना चाहेंगे. तारा के इस संघर्ष में जिस तरह उसके परिजन - भाई और पिता - खड़े हुए उसकी भी प्रशंसा होनी चाहिए। तारा की यह लड़ाई तो सचमुच तारा बनाम 'राज्य' का है पर यह उन युवतियों और महिलाओं लिए एक पूरी किताब की तरह है जिसमे विवाह के पूर्व वे किस तरह ग़लतफ़हमी और ब्लैकमेल की शिकार होती हैं और बाद में दहेज़ और अन्य कारणों से प्रताड़ित होकर अपनी जीवनलीला समाप्त करती हैं. इस बीच महिला पक्ष के बहुत सारे लोग 'जो हो गया उसे भाग्य मानकर स्वीकार करने' की सलाह देते हैं. आशा है कि इन महिलाओं तथा उनके परिजनों को तारा से गलत को सही करने की और सरकार और समाज से संघर्ष करने की सीख अवश्य मिली होगी. वैसे तो झारखण्ड, विशेषकर रांची के नागरिक, रोज रोज बहुत नजदीक से देखते हैं कि  राज्य में शासन और प्रशासन किस तरह चल रहा है पर अगर किसी प्रमाण की आवश्यकता थी तो वह भी मिल गयी है. 'कानून अपना काम करेगा या कर रहा है' इसका वास्तविक अर्थ तो यही है कि सरकार, दलाल या भ्रष्टाचार की वृद्धि में योगदान करनेवाले लोगों का कुछ नहीं बिगड़नेवाला। मेरे विचार से सीबीआई की जांच तो इसे ठंढा करने की और लम्बे समय तक लटकाने की कोशिश मात्र है. तारा की मुहिम का एक भाग यह भी है कि जिस न्यायदाता के पास हम न्याय की आस लगाकर जाते हैं और उनके आगे सर झुकाकर उनके न्यायादेशों का पालन करने को मज़बूर होते हैं और पूरी जिंदगी सही न्याय पाने के लिए एक स्तर के न्यायालय से दूसरे, तीसरे स्तर तक दौड़ लगाते हैं, उनमे बहुतेरे न्यायमूर्ति किस तरह की कमीनी हरकत करने के लिए आतुर हुआ करते हैं. उन्हें भी न्याय के प्रति कोई जिम्मेदारी महसूस नहीं हुई. पैसे और लड़की के लिए दलाली और पैरवी करनेवाले दागदार न्यायमूर्तियों के दम चलनेवाली न्यायव्यवस्था जो रंजीत कोहलियों के फ्लैट से बरामद कोर्ट के दस्तावेजों के आधार पर चलती है यह कैसे बता पाएगी की किस फैसले में न्याय हुआ और किसमे अन्याय और इस तरह के आदेशों के आधार क्या थे, यह व्यवस्था कैसे और कब चिन्हित करके समाज के सामने कौन फैसला सही और कौन गलत को अलग कर पायेगी। 'शक का लाभ आरोपी को मिलती है' इस आधार पर खड़ी  न्याय व्यवस्था उन गलत फैसलों पर किस   आधार पर अपने इन न्यायाधीशों को किस तरह दण्डित करेगी। इस पुरे मामले का निष्कर्ष यह है की पूरी शासन व्यवस्था सड़ गल चुकी है. इसमे अब राजनीतिज्ञ, मंत्री, संत्री, पुलिस एवं प्रशासनिक अधिकारी कर्मचारी का ही गठजोड़ नहीं है न्यायमूर्तियों ने भी अपने को उसी स्तर तक उतार लिया है.  यहां मैं यह भी स्पष्ट करना चाहता हूँ कि इस पुरे आकलन को किसी विशेष राजनीतिक पार्टी के पक्ष या विपक्ष में देखना अनुचित होगा क्योकि व्यवस्था में उपजी यह सड़ांध कई दशकों में फली फूली है जिस रास्ते पर भिन्न भिन्न राजनितिक दल अलग अलग समय में चलते रहे आम आदमी के जीवन को कष्टकर बनाने में यथोचित करते रहे. इसलिए अब समय आ गया है जब प्रबुद्ध नागरिकों का हस्तक्षेप आवश्यक हो गया है. इसलिए प्रभात खबर या 'दर्शक' या कोई अन्य समूह को निष्पक्ष और स्वतंत्र दिखनेवाले नागरिकों की एक समिति के द्वारा इसकी जांच कराने की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए। लोकतान्त्रिक समाज में यह एक नूतन पर अतिआवश्यक एवं समसामयिक प्रयोग हो सकता है.    
   

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