Monday, August 25, 2014

रांची में २५ अगस्त के अनावश्यक बंद के परिणाम

रांची बंद किये जाने के लिए जो कुछ भी कहा गया और रांची बंद के दौरान शहर के रोड रास्ते में जिस तरह की गुंडागर्दी की गयी वह इस परिकल्पना को स्थापित करने में सफल रही  कि भाजपा की नीति 'कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना' के तौर पर काम कर रही है. विज्ञानं के नियमो को अगर  आधार माने तो लगता है की इस देश के लोगों को भाजपा और मोदी से जितनी जल्दी उम्मीदें बंधी थी उतनी ही जल्दी मायूसी के दर्शन भी होने लगी। विरोधी पार्टी के मुख्यमंत्रियों की  उन्ही के राज्य में मंच पर प्रधानमंत्री की उपस्थिति  में उन्ही की पार्टी के लोगों द्वारा हूटिंग और बेइज़्ज़त करने की क्रिया को 'अतिथि देवो भव' के इस देश में कभी स्वीकृति नहीं मिलेगी और मध्यमवर्गी समाज तो इसे ज्यादा जल्द ही अनुभव कर लेगा और अपनी कार्रवाई भी शुरू करेगा. बिहार में आज भाजपा को मिली पटखनी वैसे तो सरल अंकगणित का मामला था पर सुशील मोदी इसी फेसबुक में जो अनाप शनाप बयान लगातार दे  रहे थे उससे वे एक अपरिपक़्व नेता का व्यक्तित्व पेश कर रहे थे. इस देश की जनता वैसे तो सरकारों पर भरोसा करना कब का छोड़ चुकी है फिर भी रांची बंद जैसी गुंडागर्दी को स्वीकार तो नहीं करती। ऐसे हुक्मरान पहले भी आए गए जो अपने फायदे के लिए इस तरह के विचार और हथकंडे अपनाते रहे हैं. उन्हें जनता ने धूल चटाने की पहली पाठ शुरू कर दी है. अब यह बात मोदियों पर है कि उनके अगले कदम में कोई परिवर्तन होगा क्या।      

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